सलोनी तिवारी: संतों की भूमि कहे जाने वाले वृन्दावन में हाल ही में सतगुरु दरबार वाले संत कुलविंदर दास जी का आगमन हुआ। इस पावन अवसर पर अंशिका मीडिया की संपादक सलोनी तिवारी ने उनसे विशेष बातचीत की।
सलोनी तिवारी ने जब संत कुलविंदर दास जी से पूछा कि वे वृन्दावन कैसे चले आते हैं और संत वास्तव में कैसे होते हैं, तो उन्होंने अत्यंत सरलता और भावनात्मक अंदाज़ में उत्तर दिया।
उन्होंने कहा, “वृन्दावन तो राधा-कृष्ण की लीला भूमि है। यहाँ आने की प्रेरणा कोई बाहरी नहीं, आत्मिक खिंचाव होता है। राधा रानी और ठाकुर जी की महिमा ही ऐसी है कि आत्मा स्वयं खिंच कर आ जाती है।”
संत कुलविंदर दास जी ने संत जीवन की सच्ची व्याख्या करते हुए बताया, “संत वह नहीं जो सिर्फ प्रवचन करे या दिखावे में रहे। संत तो वह है जो हर समय दूसरों की सेवा में रत हो। जिसने अपना जीवन परोपकार और मानव कल्याण को समर्पित कर दिया हो।”
उन्होंने आगे कहा कि सेवा, प्रेम और भक्ति – यही सच्चे संत के तीन स्तंभ हैं। आज के युग में ऐसे संतों की पहचान उनके कर्मों से होती है, न कि बाहरी वेशभूषा से।
उनकी इस आध्यात्मिक दृष्टिकोण और प्रेममयी वाणी ने वृन्दावनवासियों और भक्तों के मन को गहराई से स्पर्श किया।
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