सलोनी तिवारी : नई दिल्ली। महामहिम राष्ट्रपति ने हाल ही में आयोजित ज्ञानपीठ पुरस्कार समारोह में अपने संबोधन के दौरान साहित्य की महत्ता को रेखांकित करते हुए कहा कि साहित्य समाज को न केवल जोड़ता है, बल्कि उसे जागरूक भी करता है। उन्होंने इस अवसर पर जगद्गुरु रामभद्राचार्य को उनके बहुआयामी योगदान के लिए बधाई दी और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित गुलज़ार जी को भी शुभकामनाएं दीं, जो स्वास्थ्य कारणों से समारोह में शामिल नहीं हो सके।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत की साहित्यिक परंपरा में वाल्मीकि, व्यास, कालिदास से लेकर रवींद्रनाथ ठाकुर तक के रचनाकारों ने भारतीयता की चेतना को जीवंत किया है। उन्होंने बताया कि ‘वंदे मातरम्’ गीत पिछले 150 वर्षों से देशवासियों में देशभक्ति की भावना को जागृत करता रहा है।
उन्होंने भारतीय ज्ञानपीठ ट्रस्ट की सराहना करते हुए कहा कि यह संस्थान 1965 से भारतीय भाषाओं के श्रेष्ठ साहित्यकारों को सम्मानित कर रहा है और इस पुरस्कार की गरिमा बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। उन्होंने महिला साहित्यकारों जैसे आशापूर्णा देवी, अमृता प्रीतम, महादेवी वर्मा, महाश्वेता देवी आदि का उल्लेख करते हुए कहा कि इनकी रचनाएं समाज की गहराई को छूती हैं और नई पीढ़ी की बहन-बेटियों को इससे प्रेरणा लेकर साहित्य सृजन में आगे आना चाहिए।
राष्ट्रपति ने जगद्गुरु रामभद्राचार्य की दृष्टिहीनता के बावजूद उनके दिव्य दृष्टिकोण की प्रशंसा करते हुए कहा कि उन्होंने साहित्य और समाज सेवा में असाधारण योगदान दिया है। उन्होंने विश्वास जताया कि उनके जीवन से प्रेरणा लेकर आने वाली पीढ़ियाँ राष्ट्र निर्माण की दिशा में अग्रसर होंगी।










